एमपी बोर्ड कक्षा 12वीं के 2023–24 शैक्षणिक वर्ष के नतीजे भारत की शिक्षा व्यवस्था और युवाओं की वास्तविक स्थिति को उजागर करते हैं।
- लड़कियों की उत्तीर्ण प्रतिशत: 68.42% (213,385 पास)
- लड़कों की उत्तीर्ण प्रतिशत: 60.54% (189,064 पास)
- कुल उत्तीर्ण प्रतिशत: 64.49%
पहली नज़र में यह आँकड़े बताते हैं कि अकादमिक क्षेत्र में लड़कियाँ लड़कों से बेहतर प्रदर्शन कर रही हैं। लेकिन इन आँकड़ों के पीछे समाज और संस्कृति की गहरी सच्चाई छिपी है।
लड़कियाँ बेहतर क्यों कर रही हैं?



भारत में जब कोई लड़की किशोरावस्था (puberty) में पहुँचती है तो परिवार उसके बाहर जाने पर रोक लगाता है। वह अधिकतर समय घर में रहती है और मोबाइल जैसी विचलित करने वाली चीज़ों से दूर रहती है। माँ—चाहे शिक्षित हो या नहीं—लड़की की सोच और दिनचर्या पर गहरा प्रभाव डालती है।
शारीरिक और हार्मोनल बदलाव (जैसे एस्ट्रोजन का प्रभाव) भी अनुशासन और आत्म-सजगता को बढ़ाते हैं। 18 वर्ष की आयु तक पहुँचने पर सामाजिक रूप से उसे परिवार की ज़िम्मेदारी के योग्य माना जाता है। यह चक्र पीढ़ी दर पीढ़ी चलता आ रहा है।
लड़के और ध्यान की समस्या
भारत लगभग 89% साक्षरता दर का दावा करता है, खासकर केरल और तमिलनाडु जैसे राज्यों में। लेकिन सवाल है: क्या यह असली साक्षरता है या केवल एक भ्रम?
- 20–35 वर्ष आयु वर्ग के लगभग 37 करोड़ युवा ऊर्जा-विहीन, लक्ष्यहीन और कौशलविहीन नज़र आते हैं।
- ग्रामीण युवा खेती छोड़कर डिग्री लेते हैं और केवल सरकारी नौकरी की चाह रखते हैं।
- बेरोज़गारी और अवसाद उन्हें नशे, अपराध और शराब की ओर धकेलते हैं।
- महिलाएँ अक्सर जल्दी विवाह कर लेती हैं और पोषण की कमी के बीच कई बच्चों को जन्म देती हैं।
तीजा? जेलें भरी हुई हैं, शराब की दुकानों पर बेरोज़गार युवाओं की भीड़ है, और अवैध गतिविधियाँ जैसे मानव तस्करी व ड्रग्स बढ़ रही हैं।
एक सुलगता हुआ ज्वालामुखी
भारत के नेता आँकड़ों की चमक दुनिया को दिखाते हैं, लेकिन असली तस्वीर छुपाते हैं: एक बड़ी संख्या में शिक्षित युवा दिशा, अवसर और उद्देश्य के बिना जी रहे हैं।
हमारे पड़ोसी देशों—नेपाल, पाकिस्तान, श्रीलंका, म्यांमार, मालदीव—में भी यही अस्थिरता दिखाई देती है। भारत के लिए यह ज्वालामुखी धीरे-धीरे आकार ले रहा है। जब यह फटेगा, परिणाम विनाशकारी होंगे।
अंतिम शब्द
सच्ची साक्षरता केवल परीक्षा पास करने या आँकड़े बढ़ाने का नाम नहीं है। यह ऊर्जावान, उद्देश्यपूर्ण और सामाजिक रूप से जिम्मेदार नागरिक बनाने की प्रक्रिया है। जब तक शिक्षा को कौशल, रोज़गार और मूल्यों से नहीं जोड़ा जाएगा, भारत का जनसांख्यिकीय लाभ (demographic dividend) जनसांख्यिकीय संकट (demographic disaster) में बदल सकता है।




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